निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

वे उलटकर चोट भी करेंगे और तब काँच और हीरे का भेद जानना बाकी न रहेगा।

लेखक यहां हमें हीरे समान गांव के लोगों के गुणों की बखान हीरे की तर्ज पर ही करते हैं। उनका इस बारे में गांव के लोगों का हीरे के समान अंदर से ठोस होना मानना है। ये लोग हीरे के समान कुछ क्षणों तक लोगों की नजर में अपने क्रूड होने के कारण नहीं आ पाते हैं। पर इसमें इसको तराशे जाने पर ये अपनी स्वाभाविक चमक को ग्रहण कर लेते हैं। और तब फिर ये लोगों के बीच अपने स्थायित्व का बोध जगा जाते हैं। लेखक की दृष्टि में तब कांच के समान बनावटी सुंदरता वाले क्षणभंगुर शहर के लोग और उन हीरों की स्थायित्व वाले गुणों से लैस ग्रामीणों के बीच अंतर साफ पता चलने लगता है।


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